हम बचपन से देखते आ रहे हैं कि पूजा के अनुष्ठान या धार्मिक कार्य के दौरान हाथों में रक्षा सूत्र बांधा जाता है। रक्षा सूत्र को हम मौली बोलते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ  'सबसे ऊपर' होता है। इसे कलाई में बांधने की वजह से 'कलावा' नाम से भी जाना जाता है। 

पुराणों के अनुसार, इसका वैदिक नाम मणिबंध है। सनातन पंरपरा के अनुसार, यज्ञ के बाद इसे कलाई में धारण किया जाता है। रक्षा सूत्र धारण करने के कई सारे नियम हैं। आइये जानते हैं इसे धारण करने का महत्व और इससे जुड़ी कथा के बारे में।

रक्षा सूत्र धारण करने का नियम

- रक्षा सूत्र पुरुषों और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में धारण करना चाहिए।

- विवाहित महिलाओं को रक्षा सूत्र बाएं हाथ में धारण करना चाहिए।

- नये रक्षा सूत्र धारण करने के बाद पुराने को पीपल के पेड़ के नीचे रखना चाहिए। 

- रक्षा सूत्र को कलाई में धारण करते वक्त पांच से सात बार घुमाना चाहिए। 

- जिस कलाई में रक्षा सूत्र धारण कर रहे हों, उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।

- रक्षा सूत्र में त्रिदेव और त्रिदेवियां

रक्षा सूत्र कच्चे धागे से बनाया जाता है। इसमें तीन रंग लाल, पीला और हरा का प्रयोग किया जाता है। इन तीनों रंग को त्रिदेव और त्रिदेवियों से जोड़ कर देखा जाता है। इसे धारण करने से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा तीन देवियां लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा दृष्टि बनी रहती है।