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एकादशी की तरह ही हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत रखा जाता है। ये व्रत महादेव और माता पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को भी बहुत प्रभावशाली माना गया है। प्रदोष व्रत में महादेव का पूजन प्रदोष काल में ही किया जाता है। माना जाता है कि प्रदोष काल में महादेव का पूजन करने से सभी देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। इस माह का पहला प्रदोष व्रत 9 अप्रैल 2021 को रखा जाएगा। पुराने समय से महादेव के भक्त इसी मान्यता के आधार पर प्रदोष का व्रत रहते आ रहे हैं, लेकिन हम में से ज्यादातर लोग आज भी ये नहीं जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है।
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला था तो सृष्टि को बचाने के लिए उस भयंकर विष को पी लिया था। वो विष इतना ज्यादा असरकारी था कि उसे पीने के बाद महादेव का कंठ नीला पड़ गया था और विष के प्रभाव से उनके शरीर में असहनीय जलन होने लगी थी। तब देवताओं ने जल, बेलपत्र वगैरह से महादेव की जलन को कम किया था। जिस समय ये घटना घटी थी उस समय त्रयोदशी तिथि थी और प्रदोष काल था। संसार को विष के प्रभाव से बचाने के बाद देवताओं ने इसी प्रदोष काल में महादेव की स्तुति की थी। प्रसन्न होकर महादेव ने भी तांडव किया था। तभी से हर त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में महादेव के पूजन की परंपरा चलती आ रही है और ये व्रत प्रदोष व्रत के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
प्रदोष काल को लेकर वैसे तो क्षेत्र के हिसाब से कई तरह की मान्यताएं हैं, लेकिन ज्यादातर मान्यताओं में एक बात समान रूप से बताई गई है। उस आधार पर प्रदोष काल सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद तक माना जाता है। इसके अलावा प्रदोष काल को खासतौर पर महादेव का पूजन ही किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन महादेव का व्रत रखने और प्रदोष काल में विधि-विधान से महादेव का पूजन करने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। प्रदोष काल को ही ध्यान के लिए और सुषम्ना नाड़ी को जागृत करने के लिए विशेष समय माना जाता है।
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