हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस तरह से एक महीने में दो प्रदोष व्रत आते हैं। जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ता है तो उसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। शनिवार का प्रदोष व्रत काफी खास माना जाता है। क्योंकि इस दिन जो भी इंसान सच्चे मन भगवान शिव को शनि देव की पूजा अर्चना करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

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शनि प्रदोष व्रत उन लोगों के लिए भी खास माना गया है जिन पर शनि साढ़े साती, शनि ढैय्या या शनि की महादशा चल रही हो। क्योंकि इस व्रत को करने से शनि के दोष से मुक्ति मिलती है। शनि प्रदोष वाले दिन शिव चालीसा  और शनि चालीसा का पाठ जरूर करें। साथ ही शनि प्रदोष की कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।

शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक नगर में सेठ दंपत्ति रहते थे। सेठजी के घर में सारी सुख-सुविधाएं मौजूद थीं। मगर, उनका कोई संतान नहीं था। इस कारण से सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी और चिंतित रहते थे। काफी सोच-विचार करने के बाद सेठजी ने अपने काम नौकरों को सौंपकर सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।

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अपने नगर से बाहर निकलते ही उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा तय की जाए। ऐसा सोचते हुए सेठ और सेठानी साधु के निकट जाकर बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें पता चला कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में यहां बैठे हैं।

साधु ने बिन कहे सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष का व्रत करो। इससे तुम्हें संतान सुख अवश्य प्राप्त होगा। साधु ने सेठ और सेठानी को प्रदोष व्रत की विधि बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना भी बताई।

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हे रुद्रदेव शिव नमस्कार ।

शिवशंकर जगगुरु नमस्कार ॥

हे नीलकंठ सुर नमस्कार ।

शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार ॥

हे उमाकांत सुधि नमस्कार ।

उग्रत्व रूप मन नमस्कार ॥

ईशान ईश प्रभु नमस्कार ।

विश्‍वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार ॥

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इस तरह सेठ-सेठानी दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे निकल पड़े। तीर्थयात्रा पूरी करके घर आने के बाद सेठ और सेठानी दोनों ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत का विधिवत पालन किया। भगवान के आशीर्वाद और व्रत के प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। इस प्रकार खुशियों से उनका जीवन भर गया।