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मां कात्यायनी (Maa Katyayani) का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। बताया जाता है कि मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। मां को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
मां देवियों में सर्वाधिक सुंदर है कात्यायनी।
विवाह योग्य कन्याओं एवं विशेष रूप में जिनके विवाह में विलंब हो रहा हो, उनके लिए नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन प्रातःकाल से ही मां भगवती (Maa Bhagwati) का अर्चन एवं पूजन किया जाता है। देवी भक्तों का अनुभव है कि यदि कोई कन्या इस षष्ठी पूजन को पूर्ण विधि-विधान एवं श्रद्धा से कर लें तो उसका विवाह एक वर्ष के भीतर ही हो जाता है।
मंत्र
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
कात्यायनी, महामाया महायोगीन्यधीश्वरी
नंद गोप सुतं देवी पति में कुरुते नम:
यह मंत्र बताता है कि
भगवान कृष्ण (Lord Krishna) जैसा पति पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। बताया जाता है कि यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए वह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
मां कात्यायनी (Maa Katyayani)का स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। गोपियों द्वारा पढ़ा यह मंत्र विवाह के लिए अत्यंत असरकारी व लोकप्रिय है।
बता दें कि दुर्गा के इस रूप कात्यायनी (Maa Katyayani) को आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे- अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका माचिका भी कहते हैं। कात्यायनी कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है।
- महिलाओं के विवाह से संबंध होने के कारण इनका संबंध बृहस्पति से भी है।
- दाम्पत्य जीवन से संबंध होने के कारण इनका आंशिक संबंध शुक्र से भी है।
- शुक्र और बृहस्पति, दोनों दैवीय और तेजस्वी ग्रह हैं, इसलिए माता का तेज भी अद्भुत और सम्पूर्ण है।
- माता का संबंध कृष्ण और उनकी गोपिकाओं से रहा है और ये ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।
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