साईं बाबा का व्रत (sai baba vrat) गुरुवार को रखने का प्रावधान है। इस व्रत को किसी भी गुरुवार से शुरु किया जा सकता है। किसी भी तरह की मनोकामना को पूर्ण करने के लिए इस व्रत को रखना चाहिए। इस व्रत को ऱखते वक्त आपको इसकी व्रत कथा के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए।

एक शहर में धार्मिक आस्था और विश्वास वाली कोकिला नाम की महिला अपने पति महेशभाई के साथ रहती थी। दोनों का दांम्पत्य जीवन स्नेह और प्रेमपूर्वक गुजर रहा था। लेकिन महेश भाई कभी कभार कोकिला से झगड़ा कर लिया करते थे लेकिन कोकिला अपने पति के क्रोध को चुपचाप सहन कर लेती थी और बुरा नहीं मानती थी। वहीं कोकिला के पति महेशभाई का काम धंधा बहुत अच्छा नहीं चल रहा था, इस वजह से वह अपने घर में ही ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताते थे।

महेशभाई का व्यवसाय ठप्प होने की वजह से उनके स्वभाव में भी अधिक चिड़चिड़ापन रहने लगा और अक्सर उनकी कोकिला से नोकझोंक होने लगी।

एक दिन दोपहर के समय कोकिला के द्वार पर एक बूढ़े बाबा आए और उनके चेहरे पर गजब का तेज था। बूढ़े बाबा के भिक्षा मांगने पर कोकिला ने उन्हें दाल-चावल दान के रूप में दिए और बाबा को नमस्कार किया। बाबा का आशीर्वाद लेते ही कोकिला की आंखों से अश्रु बहने लगे। इस पर वृद्ध महाराज ने कोकिला की परेशानी का संज्ञान लेते हुए उन्हें 9 गुरुवार श्री साईंबाबा का व्रत रखने की सलाह दी। महाराज ने कहा कि अगर श्रद्धा और सबूरी के साथ यह व्रत करोगी तो हर मनोकामना पूर्ण हो जाएगी।

महाराजा के बताए अनुसार कोकिली ने 9 गुरुवार साईंबाबा के व्रत किए और गरीबों को भोजन भी कराया साथ ही साईंबाबा की पुस्तकें भेंट की। ऐसा करने से कोकिला के पति ने झगड़ा करना बंद कर दिया और महेशभाई के व्यापार में भी वृद्धि हुई। कोकिला और महेशभाई सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन कोकिला बहन की जेठानी ने बताया कि उनके बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है, जिसकी वजह से वह फेल हो जाते हैं। कोकिला बहन ने बताया कि उन्हें 9 गुरुवार श्रीसाईंबाबा का व्रत करना चाहिए ताकि उनके बच्चों का पढ़ाई में मन लगने लगे। जेठानी ने कहे अनुसार 9 श्रीसाईंबाबा के व्रत विधिपूर्वक पूर्ण किए और थोड़े ही दिनों में उनके बच्चों का पढ़ाई में मन लगने लगा और वे बहुत अच्छे अंकों से पास हुए।