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आज दुर्गा सप्तमी है और आज का दिन मां दुर्गा (Maa Durga) के स्वरूप कालरात्रि (Maa Kalratri) को समर्पित है। इस दिन मां कालरात्रि या मां काली की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। कहा जाता है कि यह मां दुर्गा का सबसे ताकतवर और शक्तिशाली रूप था। मां का इतना खतरनाक रोष था की तीनो लोक थर थर कांप गए थे। मां को शांत करने के लिए देवों के देव महादेव मां के कदमों में सो गए थे।
बता दें कि इस रूप को नटराज भी कहा जाता है। कालरात्रि के बाद अष्टमी का पर्व आता है इसमें मां दुर्गा (Maa Durga) को कंजकों को भोग लगाया जाता है। ध्यान रखें कि इस वर्ष नवरात्रि में चतुर्थी तिथि का छय होने के कारण एक नवरात्र कम है। इसलिए मां दुर्गा आठ दिनों में ही विदा हो जाएंगी।
दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami) को दुर्गा माता का कलश के जल को सूर्य को अर्घ्य देकर और नारियल को कन्याओं में बांट देंगे। कन्याओं (kanya poojan) को खाना खिलाएंगे। कन्याओं के भोग में हलवा-पूरी और चने का खास महत्व है।
प्रातःकाल उठकर घर की महिलाएं स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ रसोई में दुर्गा मां के लिए भोग सामग्री बनाएं। इसमें हलवा-पूरी और काले चने का प्रसाद बनता है।
- कोई आलू की सब्जी भी बनाते हैं।
- सबसे पहले मां दुर्गा की ज्योत करें और मां को आठ पूरी हलवा और चने का भोग लगाएं।
- इसके बाद कन्याओं को भोजन कराएं।
- इसमें नौ कन्याओं को भोजन कराने का विधान है।
- कभी-कभी कन्याओं कम पड़ जाती हैं तो उनकी थाली अवश्य निकालें।
- भोजन कराने के बाद कन्याओं को तिलक लगाएं और उनको कुछ उपहार अथवा धन अवश्य दें।
- उनके पैर जरूर छुएं। ऐसा करने से दुर्गा मां के व्रत का परायण होता है।
- जो साधकों नवमी पूजन करते हैं वे 13 अक्टूबर बुधवार को अष्टमी का व्रत रखेंगे और अगले दिन 14 अक्टूबर को दुर्गा नवमी में कंजक जिमाएंगे।
- इस वर्ष दुर्गा सप्तमी, दुर्गा अष्टमी, दुर्गा नवमी एवं दशहरा छत्र, श्रीवत्स,सौम्य और धाता आदि शुभ योगों में आ रहे हैं। यह भक्तों और विश्व कल्याण के लिए उत्तम हैं।
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