
महाशिवरात्रि के मौके पर भक्त भगवान शंकर को खुश करने के लिए जलाभिषेक और रुद्राभिषेक (Rudrabhishek) करते हैं। सभी मंदिरों में विशेष तैयारियां की गयी हैं। जानकारों के अनुसार इस महाशिवरात्रि पर दुर्लभ संयोग बन रहा है। 130 सालों बाद यह योग बन रहा है जिसमें सर्वाध सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग मिल रहा है। ऐसे में शिवरात्रि पर भगवान शंकर की पूजा करने का विशेष महत्व है।
हिंदू देवी-देवताओं में भगवान शिव शंकर सबसे लोकप्रिय देवता हैं, वे देवों के देव महादेव हैं तो असुरों के राजा भी उनके उपासक रहे। आज भी दुनिया भर में हिंदू धर्म के मानने वालों के लिये भगवान शिव पूज्य हैं। नकी लोकप्रियता का कारण है इनकी सरलता। इनकी पूजा आराधना की विधि बहुत सरल मानी जाती है। माना जाता है कि शिव को यदि सच्चे मन से याद कर लिया जाये तो शिव प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा में भी ज्यादा ताम-झाम की जरुरत नहीं होती। ये केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्रों को चढ़ाने और रात्रि भर इनका जागरण करने मात्र से मेहरबान हो जाते हैं।
निशिथ काल पूजा- 24:06 से 24:55
पारण का समय- 06:38 से 15:01 (12 मार्च)
चतुर्दशी तिथि आरंभ- 14:39 (11 मार्च)
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 15:01 (12 मार्च)
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