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भाई दूज (Bhai Dooj) का पर्व मनाने के पीछे कई पौरणिक कथा प्रचलित है। लेकिन सच में भाई दूज की ये कथा है- कथा में बताया जाता है कि सूर्य देव (Sun God) की संतान यम और यमी थे, जो भाई-बहन थे। यमुना (Yamuna) अपने भाई यमराज (Yamraj) से स्नेहवश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें।
लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया (Kartik Shukla Dwitiya) को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। यम को अनगिनत बार तंग करने के बाद आखिरकार यमी ने अपनी मनोकामना पूरी कर ली।
उसके भाई ने आखिरकार उसकी मांगें मान लीं और उससे मिलने आया। दोपहर के भोजन के बाद उन्होंने उनके माथे पर तिलक लगाया और उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना की। ऐसा स्नेह और प्रेम प्राप्त होने पर यमराज ने अपनी बहन से वरदान मांगा। वह प्यारी बहन थी, उसने उत्तर दिया कि वह बस यही चाहती है कि वह हर साल उसके पास जाए, वह कभी भी मृत्यु के देवता यमराज से नहीं डरेगी।
तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए, उसे आपका भय न रहे। अपनी बहन की प्यारी इच्छा सुनकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी बहन को आशीर्वाद दिया और उनकी इच्छा पूरी की। इस तरह इस दिन भाई को तिलक लगाकर प्रेमपूर्वक भोजन कराने से परस्पर प्रेम तो बढ़ता ही है, भाई की उम्र भी लंबी होती है।
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