दुनिया भर के सबसे बड़े धार्मिक समारोह में कुम्भ मेला का सबसे बड़ा महत्व होता है और इसे लोग बड़े ही श्रद्धा से मनाते हैं।  इस साल इसका आयोजन हरिद्वार में किया गया है। यहां पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने के लिए भिन्न भागों से श्रद्धालु आते हैं। कुम्भ आध्यात्मिक और संस्कृति का संगम है और आस्था है कि सभी के विचार इस कुम्भ में समाकर अमर हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार जब देव और दानव के बीच समुद्र  मंथन हुआ था तब अमृत की कुछ बुँदे यहां जा गिरी थी। तभी से महाकुंभ में स्नान करना सबसे पवित्र माना जाता है। कुम्भ मेला में 6 प्रमुख स्नान और 4 शाही स्नान होता है। हिन्दू धर्म में शाही स्नान का सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।  

कुम्भ मेला का आयोजन 12 साल के अंतराल में हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयाग जैसे चार जगहों पर इसका आयोजन होता है। माना जाता है कि पौराणिक समय में जब देव और दानव के बीच अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन चल रहा था, उस दौरान भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और अमृत लेकर वह स्वर्ग के रास्ते चलने लगे। जाते समय उस रास्ते में अमृत की कुछ बूंदे इन चार जगहों के धरती पर गिर गई थी और इसलिए माना जाता है कि यहां के पवित्र नदी में डुबकी लगाने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।  

हिन्दू पौराणकि कथाओं के अनुसार, कुम्भ मेला में शाही स्नान बहुत ही शुभ माना जाता है। पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के दिन आयोजित हुआ था।  इसमें सबसे पहले अखाड़े स्नान करते हैं , इसमें सबसे पहले साधु संत  ही स्नान करते हैं। इसके बाद आम लोगों की इजाजत दी जाती हैं।  शाही स्नान से पहले साधु संत  प्रदर्शन करते हैं।  गृह नक्षत्र की वजह से जो कुम्भ 12 साल के अंतराल आयोजित होता था, वह इस साल 11 साल के अंतराल ही आयोजित किया गया है।  यही कारण है कि इस साल हरिद्वार में हो रहे कुंभ बेहद ख़ास माना जा रहा है।  शाही स्नान का प्रचलन 14वीं - 16वीं सदी के बीच यानी मुग़ल शासकों के दौरान शुरू हुआ था। अंग्रेजों के समय की यह प्रचलन चलता रहा और यही एक बड़ा धार्मिक समारोह में शामिल हो गया ।