
आज मंगलवार का दिन रामभक्त हनुमान जी की पूजा के लिए है. आज आप सुंदरकांड के श्लोकों का पाठ करते हैं, तो हनुमान जी आप पर प्रसन्न होंगे. उनकी कृपा से आपके सब काम पूर्ण होंगे. मंगलवार को जन्मे पवनपुत्र हनुमान जी संकटमोचन हैं. वे आपके सभी संकटों को दूर करते हैं और मनोकामनाएं पूरी करते हैं. श्रीरामचरितमानस में तुलसीदास जी ने सुंदरकांड में वीर बजरंगबली के पराक्रम और साहस का वर्णन किया है.
सुंदरकांड के प्रारंभ में लिखे गए 3 श्लोकों में से पहले में प्रभु श्रीराम की महिमा और महात्म का वर्णन किया गया है. दूसरे श्लोक में प्रभु श्रीराम से अपनी भक्ति प्रदान करने का निवेदन किया है और तीसरे श्लोक में वीर हनुमान जी का गुणगान है. प्रभु राम का नाम लेने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं, इसलिए हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रभु श्रीराम के नाम का जप भी आवश्यक है. आइए जानते हैं सुंदरकांड के तीन प्रमुख श्लोकों के बारे में.
यह भी पढ़े : Aaj ka Rashifal 7 जून: इन राशि वालों के लिए जोखिम भरा दिन, ये लोग तांबे की वस्तु का करें दान
सुंदरकांड के 3 श्लोक
1. शान्तं शाश्वतम प्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं, ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं, वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥
इस श्लोक का अर्थ है कि शांत, सनातन, अप्रमेय, निष्पाप, मोक्षरूप परमशांति देने वाले, ब्रह्मा, शंभु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदांत के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूं.
2. नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये, सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे, कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥2॥
इसका अर्थ यह है कि हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूं और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है. हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए.
यह भी पढ़े : Vastu Tips: इस दिन तुलसी के पौधे में नहीं चढ़ाना चाहिए जल, नाराज हो सकती हैं मां लक्ष्मी
3. अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातंनमामि॥3॥
इस श्लोक का अर्थ यह है कि अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान, कांतियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम करता हूं.
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें |