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विजयदशमी का महा पवित्र दिन आने वाला है। मान्यता के मुताबिक मां दुर्गा (Maa Durga) ने महाविनाशनी का रूप धारण कर धरती से महादानव महिषासुर को मार गिराया था और महिषासुर के एक भी रक्त की बूंद धरती पर नहीं गिरने दी थी। बताया जाता है कि रम्भासुर (Rambhasur) का पुत्र था महिषासुर (Mahishasura), जो अत्यंत शक्तिशाली था।
महिषासुर (Mahishasura) ने कठिन तप किया तो ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा- '' वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों। महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- 'ठीक है प्रभो। देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो, किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें ''। ब्रह्माजी 'एवमस्तु' कहकर अपने लोक चले गए।
वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया। तब भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना की। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ।
बताया गया है कि देव हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर (Mahishasura) के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।
भगवती दुर्गा (bhagwati durga) हिमालय पर पहुंचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। महिषासुर के असुरों के साथ उनका भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर (Mahishasura) के सभी सेनानी मारे गए। फिर विवश होकर महिषासुर को भी देवी के साथ युद्ध करना पड़ा।
महिषासुर ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर देवी को छल से मारने का प्रयास किया लेकिन अंत में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर (Mahishasura) का मस्तक काट दिया। कहते हैं कि देवी कात्यायनी को ही सभी देवों ने एक एक हथियार दिया था और उन्हीं दिव्य हथियारों से युक्त होकर देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया था।
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