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देवों के देव महादेव की सबसे बड़ी रात्रि महाशिवरात्रि अगले महीने में आने वाली है। यह शिव भक्तों के लिए बहुत बड़ा त्योहार होता है। महाशिवरात्रि को पूजा, व्रत, पाठ किया जाता है। भोलेनाथ सभी भक्तों से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भगवान शिव समस्त ग्रहों, तंत्र-मंत्र और ज्योतिष के जनक हैं।
शास्त्रों में बताया जाता है कि सर्वप्रथम उन्होंने ही सप्त ऋषियों को ज्योतिष और योग का ज्ञान प्रदान कर उसे समस्त ब्रह्मांड में विस्तारित करने का काम सौंपा था। इसलिए Mahashivratri नवग्रहों को अनुकूल बनाने का सबसे प्रमुख दिन है। इस दिन shiv कृपा से समस्त ग्रह अपना शुभ प्रभाव दिखाते हैं और उनसे निकलने वाली ऊर्जा पृथ्वी पर मनुष्यों, प्राणियों, प्रकृति आदि पर अपना अनुकूल प्रभाव डालती है। इस दिन शिव पूजन के साथ नवग्रह पूजन करने से ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
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किसी जातक की जन्मकुंडली में यदि कोई ग्रह पीड़ाकारक बनकर बैठा हुआ है तो शिव कृपा से वह भी शुभ फल देने लगता है। Mahashivratri के दिन नवग्रहों को प्रसन्न करने के लिए मध्यरात्रि में नवग्रह कवच के 21 पाठ अवश्य करने चाहिए। इससे नवग्रहों की कृपा प्राप्त होती है और उनकी पीड़ा परेशान नहीं करती। यहां दिया जा रहा नवग्रह कवच यामल तंत्र में वर्णित है। इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने तथा ताबीज में भरकर भुजा में धारण करने से लाभ प्राप्त होता है।
Navagraha Kavach-
।। नवग्रह कवच ।।
ऊं शिरो मे पातु मार्तण्ड: कपालं रोहिणीपति: ।
मुखमंगारक: पातु कण्ठं च शशिनंदन: ।।
बुद्धिं जीव: सदा पातु हृदयं भृगुनंदन: ।
जठरं च शनि: पातु जिह्वां मे दितिनंदन: ।।
पादौ केतु सदा पातु वारा: सर्वागमेव च ।
तिथयौष्टौ दिश: पातु नक्षत्राणि वपु: सदा ।।
अंसौ राशि सदा पातु योग्श्च स्थैर्यमेव च ।
सुचिरायु: सुखी पुत्री युद्धे च विजयी भवेत् ।।
रोगात्प्रमुच्यते रोगी बन्धो मुच्येत बन्धनात् ।
श्रियं च लभते नित्यं रिष्टिस्तस्य न जायते ।।
पठनात् कवचस्यास्य सर्वपापात् प्रमुच्यते ।
मृतवत्सा च या नारी काकवन्ध्या च या भवेत् ।।
जीववत्सा पुत्रवती भवत्येव न संशय: ।
एतां रक्षां पठेद् यस्तु अंग स्पृष्टवापि वा पठेत् ।।।। इति श्री नवग्रह कवचं संपूर्णम् ।।
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