सूर्य ब्रह्मण्ड की क्रेन्द्रीय शक्ति हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि का गतिदाता हैं। इसे जगत को प्रकाश ज्ञान, ऊर्जा, ऊष्मा और जीवन शक्ति प्रदान करने वाला व रोगाणु, कीटाणु (भूत-पिचाश आदि) का नाशक कहा गया है। वेदों और पुराणों के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी इन्हीं बातों को कहता हैं कि सूर्य मण्डल का केन्द्र व नियन्ता होने के कारण पृथ्वी सौरमण्डल का ही सदस्य हैं। 

अत: पृथ्वी व पृथ्वीवासी सूर्य द्वारा अवश्य प्रभावित होते हैं। इस तथ्य को आधुनिक विज्ञान भी मानता हैं और ज्योतिष शास्त्र में इसी कारण इसे कालपुरूष की आत्मा और नवग्रहों में सम्राट कहा गया हैं। रविवार या संडे सूर्य भगवान का प्रमुख दिन कहलाता है।

भारतीय संस्कृति में सूर्य को मनुष्य के श्रेय व प्रेय मार्ग का प्रवर्तक भी माना गया हैं। कहा जाता हैं कि सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं। भगवान राम के पूर्वज सूर्यवंशी महाराज राजधर्म को सूर्य की उपासना से ही दीर्ध आयु प्राप्त हुई थी। 

मान्यता है कि यदि कोई सूर्य का जाप, मंत्र पाठ प्रति रविवार को 11 बार कर ले तो व्यक्ति यशस्वी होता हैं। साथ ही प्रत्येक कार्य में उसे सफलता मिलती हैं। कहा जाता है कि सूर्य के इन नक्षत्रों में ही सूर्य के लिए दान पुण्य करना चाहिए। सूर्य की उपासना के लिए कुछ महत्वपूर्ण मंत्र-

सूर्य मंत्र : ऊँ सूर्याय नम: ।

 

तंत्रोक्त मंत्र : ऊँ ह्यं हृीं हृौं स: सूर्याय नम: ।

ऊँ जुं स: सूर्याय नम: ।

 

सूर्य का पौराणिक मंत्र :

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।

तमोहरि सर्वपापघ्नं प्रणतोडस्मि दिवाकरम् ।

 

सूर्य का वेदोक्त मंत्र-विनियोग

ऊँ आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषि, त्रिष्टुप छनद:

सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोग: ।

 

मंत्र : ऊँ आ कृष्णेन राजसा वत्र्तमानों निवेशयन्नमृतं मत्र्य च ।

हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।