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हिन्दू धर्म में कई तरह के ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते हैं लेकिन परंपरा मानकर उसे करते रहते हैं। इन में शामिल हैं 'स्वास्तिक'। जैसे कि हम जानते हैं कि सनातन धर्म में स्वास्तिक (Swastika) को बेहद शुभ माना गया है। अब सवाल है कि स्वास्तिक क्यों शुभ हैं। आइए जानते हैं इसके पीछ का कारण....
हम किसी भी काम की शुरुआत करते समय लोग अक्सर स्वास्तिक (Swastika) का चिन्ह बनाते हैं क्योंकि स्वास्तिक का सीधा संबन्ध गणपति से बताया जाता है। मान्यता है कि स्वास्तिक शब्द ‘सु’ और ‘अस्तिका’ से मिलकर बना है। सु का अर्थ है शुभ व अस्तिका से तात्पर्य है होना. अतः स्वास्तिक का अर्थ हुआ शुभ होना।
शास्त्रों के मुताबिक स्वास्तिक (Swastika) में देवताओं का वास माना जाता है। मान्यता है कि इसे बनाने मात्र से उस स्थान की नकारात्मकता दूर हो जाती है। इसलिए तमाम लोग अपने घर के बाहर भी स्वास्तिक बनाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से वास्तुदोष समाप्त होता है, साथ ही घर में नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर पाती।
स्वास्तिक (Swastika) आकृति का अर्थ-
स्वास्तिक (Swastika) को विघ्नहर्ता गणेश का रूप माना जाता है।
स्वास्तिक का बाएं तरफ का हिस्सा गं बीज मंत्र होता है।
स्वास्तिक के चार तरफ लगने वाली बिंदी में माता गौरी, पृथ्वी, कूर्म व देवताओं का वास माना जाता है।
स्वास्तिक की चार रेखाओं का संबन्ध ब्रह्मा जी (Brahma) से माना गया है। चारों रेखाएं ब्रह्मा जी के चार सिर हैं।
इसके मध्य का भाग भगवान विष्णु की नाभि है।
स्वास्तिक जहां भी बनाया जाता है वहां गणपति समेत तमाम देवी और देवता वास करते हैं।
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