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यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के वार्ता समर्थक गुट ने इसके साथ शांति वार्ता के प्रति केंद्र की 'ईमानदारी' पर संदेह व्यक्त किया है। वार्ता समर्थक ULFA ने कहा है कि पिछले दो वर्षों में केंद्र और समूह के बीच कोई बातचीत नहीं हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार, वार्ता समर्थक ULFA समूह ने दावा किया है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से शांति वार्ता के संबंध में "ज्यादा प्रगति" नहीं हुई है।
ULFA ने कहा कि “ उसके और केंद्र के बीच बातचीत पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Ex-PM Manmohan Singh) के कार्यकाल के दौरान अंतिम चरण में पहुंच गई थी। सरकार के साथ अंतिम दौर की बातचीत जनवरी 2020 में हुई थी। सरकारी वार्ताकार का कार्यकाल उस वर्ष मार्च में समाप्त हो गया था। उसके बाद हमसे कोई संपर्क नहीं हुआ। फिर भी, हम इस उम्मीद के साथ इंतजार कर रहे हैं कि सरकार हमारे मुद्दों का समाधान करेगी और हल करेगी।'
वार्ता समर्थक ULFA का यह आरोप असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा (Himanta Biswa) द्वारा दावा किए जाने के एक दिन बाद आया है कि परेश बरुआ को बातचीत की मेज पर लाने के प्रयास चल रहे हैं। सरमा ने कहा कि परेश बरुआ के नेतृत्व वाले उल्फा-इंडिपेंडेंट ने शांति वार्ता में गहरी दिलचस्पी दिखाई है।
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