मंदारिन बत्तख चीन, जापान, कोरिया और रूस के कुछ हिस्सों में भी पाया जाता है। फिलहाल विशेषज्ञ पता लगा रहे हैं कि यह पक्षी इतने लंबे अंतराल के बाद कैसे और क्यों असम तक पहुंचा है। असम ही नहीं बल्कि मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और पुणे जैसे दूरदराज के इलाकों से भी पक्षी प्रेमी इस बत्तख को देखने के लिए बीते एक सप्ताह के दौरान तिनसुकिया जिले का दौरा कर चुके हैं। इलाके में सर्वेक्षण करने वाली वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक टीम भी इस बत्तख को देख चुकी है।

ऊपरी असम के तिनसुकिया जिले में स्थित डिब्रू-साईखोवा नेशनल पार्क के भीतर मागुरी झील में बीते एक सप्ताह से इस दुर्लभ व सुंदर बत्तख को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है। स्थानीय लोगों ने इसे जीवन में पहली बार देखा है। जिले के एक टूर गाइड और पक्षी प्रेमी माधव गोगोई ने इसे पहली बार देखा था। गोगोई बताते हैं, "मैंने इसे पहली बार आठ फरवरी को देखा था। इसे देख कर मैं हैरत में रह गया।

इस पक्षी को आखिरी बार 1902 में यहां देखा गया था।” उनका कहना है कि यह बत्तख पूर्वी एशिया में पाए जाते हैं। 18वीं सदी में इनको इंग्लैंड भी ले जाया गया था। पहले चीन बड़े पैमाने पर इस पक्षी का निर्यात करता था। लेकिन 1975 में इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी। वैसे, 1918 में इन बत्तखों को न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में भी देखा जा चुका है। उस समय स्थानीय लोगों और पक्षी प्रेमियों को काफी हैरत हुई थी।

विशेषज्ञ फिलहाल पता लगा रहे हैं कि इतने लंबे अरसे के बाद इस पक्षी ने आखिर असम का रुख कैसे किया है। हालांकि दुर्लभ होने के बावजूद इसको विलुप्तप्राय प्रजाति का जीव नहीं माना जाता।”