/fit-in/640x480/dnn-upload/images/2020/12/05/image-1607137465.jpg)
सीमा के नजदीक तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नद पर चीन की बड़ी पनबिजली परियोजना निर्माण की बात पर भारत सचेत हो गया है। भारत सीमाओं पर मजबूत सड़क नेटवर्क खड़ा करने की कड़ी में ब्रह्मपुत्र नद पर देश का सबसे लंबा सड़क पुल बनाने जा रहा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इसके निर्मा की मंजूरी दे दी है।
यह पुल विशाल ट्रांस-एशियाई गलियारे का एक बड़ा लिंक होगा जो पूर्वोत्तर भारत और भूटान को वियतनाम से जोड़ेगा। इससे चीन की टेंशन बढ़नी तय मानी जा रही है। इस पुल के निर्माण को मंजूरी मिल चुकी है। इस परियोजना को भारत और जापान के बीच बढ़ती रणनीतिक साझीदारी का उदाहरण माना जा रहा है। यह पुल चीन की सड़क परियोजना को भी संतुलित करेगा। असम से मेघालय को ने कहा है कि वह इसको लेकर सभी गतिविधियों पर पैनी नजर रख रहा है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, चीनी पक्ष ने कई मौकों पर कहा है कि वह सिर्फ नदी जोड़ने वाले इस पुल की लंबाई 19 किलोमीटर बताई जाती है। पुल के बनने से असम के धुबड़ी से मेघालय का फुलबारी जुड़ जाएगा। यही नहीं इससे त्रिपुरा, बराक वैली से जुड़े क्षेत्रों में आवागमन सुलभ हो जाएगा।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना का आसियान के कई सदस्य देशों विशेषकर म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस पर भी प्रभाव पड़ेगा। 2018 में भारत और जापान के बीच इस पुल को लेकर समझौता होने के बाद से यह परियोजना लोगों की नजरों में है। यह पुल भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग को ईस्ट-वेस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर से जोड़ेगा। ईस्ट-वेस्ट इकोनॉमिक कॉरिंडोर जापान समर्थित परियोजना है, जिसमें थाईलैंड, लाओस और वियतनाम शामिल हैं।
ब्रह्मपुत्र नद पर बांध बनाने की चीन की परियोजना के बारे में भारत जल विद्युत परियोजना चलाना चाहता है। नदी की धारा मोड़ने का उसका कोई इरादा नहीं है। ब्रह्मपुत्र पर बनाए जाने वाले बांध को लेकर चीन ने अपना रुख नरम करते हुए कहा है कि उसे इसको लेकर कोई जल्दबाजी नहीं है। वह भारत और बांग्लादेश के साथ इस मसले पर विचार-विमर्श करना जारी रखेगा। इस बारे में पूछे जाने पर चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि सीमा पार नदियों पर जब इस तरह की परियोजना की बात आएगी, तो चीन जिम्मेदारी से काम करेगा।
दरअसल, चीन के ब्रह्मपुत्र नद के एक हिस्से पर बांध बनाए जाने की खबरें सामने आने के बाद भारत बेहद सतर्क हो गया है। चीन की परियोजना की काट के लिए ही भारत ब्रह्मपुत्र नद पर अरुणाचल प्रदेश में 10 गीगावाट की पनबिजली परियोजना लगाने की योजना बना रहा है। ब्रह्मपुत्र नद जिसे चीन में यारलुंग त्सांगबो के नाम से जानते हैं। यह तिब्बत से निकलकर अरुणाचल प्रदेश और असम होते हुए बांग्लादेश तक चली जाती है। चीन के बांध बनाने से भारतीय इलाकों में बाढ़ की आशंकाएं हैं।
यही कारण है कि चीन के बांध से उत्पन्न प्रभाव को कम करने के लिए भारत को भी अरुणाचल में एक बड़ा बांध बनाना पड़ेगा। भारत इस पर फैसला ले चुका है। इस बीच विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि ब्रह्मपुत्र मामले को लेकर भारत संजीदा है। भारतीय विदेश मंत्रालय चीन से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि अपस्ट्रीम क्षेत्रों में गतिविधियों से डाउनस्ट्रीम राज्यों के हितों को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए।
हमारी बात पर चीनी पक्ष पहले कई मौकों पर हमकों अवगत करा चुका है कि वे केवल नदी जल विद्युत परियोजनाओं का संचालन कर रहे हैं। इसमें ब्रह्मपुत्र के पानी का डायवर्जन शामिल नहीं है।
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें |