मणिपुर में कांग्रेस (Manipur congress) पुरानी गलतियों को नहीं दोहराएगी। उनसे सबक लेते हुए विधानसभा चुनाव (Assembly election) में जीत की दहलीज तक पहुंचने की कोशिश करेगी। इसलिए पार्टी चुनाव प्रचार में किसी एक धर्म या समुदाय की हिमायत करने से परहेज करेगी।

मणिपुर में कांग्रेस पिछले पांच साल से सत्ता से बाहर है। वहीं, इन पांच साल में सत्ता में रहते हुए भाजपा ने खुद को बहुत मजबूत किया है। इसलिए पार्टी के लिए चुनौती काफी बड़ी है। इसलिए कांग्रेस चुनाव में भाजपा (BJP) को कोई मौका देने का जोखिम नहीं उठाएगी। मणिपुर में हिंदू और ईसाई मतदाताओं की तादाद लगभग 42-42 प्रतिशत है। वहीं, करीब 9 फीसदी मुसलमान मतदाता हैं।

प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी धर्मों के मतदाता पार्टी को वोट करते रहे हैं। पर पिछले पांच साल में तस्वीर बदली है। इसलिए पार्टी को असम और पश्चिम बंगाल चुनाव से अलग रणनीति अपनानी होगी। पार्टी नेता के मुताबिक, मुसलिम मतदाता करीब एक दर्जन सीट पर हार-जीत का फैसला करते हैं, पर असम और बंगाल की तर्ज पर चुनाव प्रचार से परहेज चाहिए।

2017 में कांग्रेस को 60 में 27 सीट मिली थी, पर इसके बावजूद पार्टी सरकार बनाने में नाकाम रही। जबकि 21 सीट जीतने के बावजूद भाजपा ने स्थानीय पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना थी। हालांकि, विधायकों के पाला बदलने से भाजपा विधायकों की संख्या 27 पहुंच गई। कांग्रेस के सामने भाजपा के साथ एक और चुनौती भी है। तृणमूल कांग्रेस भी इस बार पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी। मणिपुर में तृणमल का जनाधार रहा है। 2012 के चुनाव में तृणमूल को 12 सीट मिली थी। हालांकि,2017 के चुनाव में टीएमसी सिर्फ एक सीट जीत पाई थी।