असम में चुनावों के दौरान असमिया गमछा खासा लोकप्रिय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियकां गांधी सभी असमिया गमछे में नजर आ रहे हैं। असमिया संस्कृति के प्रतीक इस गमछे से हर कोई खुद को असम की अस्मिता और संस्कृति के करीब दिखाना चाहता है।

असमिया गमछा के जरिए बड़े लोगों व मेहमानों का सम्मान किया जाता है। अब यह राजनीतिक दलों के लिए एक ऐसा जरिया बन गया है जिसके जरिए वह राज्य में अपने राजनीतिक हित साधने में जुटे हैं। राज्य में पहुंच रहे हर नेता का सम्मान स्वागत तो इस गमछे से किया ही जा रहा है। रैलियों व सभाओं में भी इस गमछे की बहार है। इतना ही नहीं इसके जरिए विरोध भी दर्शाया जा रहा है। कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता इस गमछे पर नो सीएए भी लिखवा रहे हैं।

समर्थव या विरोध, हर जगह है गमोसा : हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कोविड टीकाकरण के लिए एम्स गए तो उनके गले में असमिया गमछा था। असम में प्रचार करने पहुंच रहे नेताओं अमित शाह, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, नड्डा आदि के गले में भी असमिया गमछा देखा जा सकता है। यह हाथ से बना लाल सफेद धारियों वाले बार्डर से बना गमछा होता है। स्वागत-सम्मान से लेकर रैलियों व प्रदर्शनों में इस गमछे का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। कई लोग मास्क की जगह इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं।

सौ साल पहले मिली थी पहचान : लगभग सौ साल पहले 1916 में असमिया राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में यह गमछा सामने आया। तब असम छात्र संमिलन और असमिया साहित्य सभा जैसे संगठन सामने आए थे। बाद में 1979 से 1985 के असम छात्र आंदोलन के दौरान भी इस गमछे को राजनीतिक विरोध का प्रतीक बनाया गया। अब राजनीतिक दल इसे असमिया संसकृति का प्रतीक मानकर इसका उपयोग कर रहे हैं और इसके जरिए खुद को असम से जोड़ रहे हैं।