ईटानगर। अरुणाचल प्रदेश (Arunachal border) के बॉर्डर पर सन 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध (China War 1962) में शहीद हुए जसवंत सिंह रावत (Jaswant Singh Rawat) की आत्मा आज भी बॉर्डर पर तैनात है  जसवंत सिंह मर कर भी अम्र हैं और भारत की रक्षा को तत्पर हैं और यहीं कारण है की रोज उनके कपड़ों पर प्रेस की जाती है उनके जूतों पर पॉलिश की जाती है

लेकिन दिलचस्प बात यह है की सुबह-सुबह जब चादर और अन्य कपड़ों को देखा जाए तो उनमें सिलवटें नजर आती हैं। वहीं, पॉलिश के बावजूद जूतों बदरंग हो जाते हैं। वहां रहने वाले जवानों और स्थानीय लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत (Jaswant Singh Rawat) की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा कर रही है।

उनके नाम से नूरानांग में जसवंतगढ़ नाम का बड़ा स्मारक बनाया गया है। जहां शहीद के हर सामान को संभालकर रखा गया है। देश के खातिर शहीद हो चुके जसवंत के जूतों पर यहां रोजाना पॉलिश की जाती है और पहनने-बिछाने के कपड़े प्रेस किए जाते हैं। इस काम के लिए सिख रेजीमेंट के लिए पांच जवान तैनात किए गए हैं।

यही नहीं, रोज सुबह और रात की पहली थाली जसवंत की प्रतिमा के सामने परोसी जाती है। बताया जाता है कि सुबह-सुबह जब चादर और अन्य कपड़ों को देखा जाए तो उनमें सिलवटें नजर आती हैं। वहीं, पॉलिश के बावजूद जूतों बदरंग हो जाते हैं।

9 अगस्त 1960 को जसवंत को सेना में राइफल मैन के पद पर शामिल कर लिया गया और 14 सितंबर 1961 को जसवंत की ट्रेनिंग पूरी हुई, उसी के बाद यानी 17 नवंबर 1962 को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला कर दिया।इस दौरान सेना की एक बटालियन की एक कंपनी नूरानांग ब्रिज की सेफ्टी के लिए तैनात की गई। जिसमें जसवंत सिंह रावत (Jaswant Singh Rawat) भी शामिल थे।

चीन की सेना हावी होती जा रही थी, इसलिए भारतीय सेना ने गढ़वाल यूनिट की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया। मगर इसमें शामिल जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाई नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से गोलीबारी कर रही चीनी मशीनगन को छुड़ाना चाहते थे।

तीनों जवान चट्टानों और झाड़ियों में छिपकर भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और महज 15 यार्ड की दूरी से हैंडग्रेनेड फेंकते हुए दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारकर मशीनगन छीन लाए। इससे पूरी लड़ाई की दिशा ही बदल गई और चीन का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो सका। हालांकि, इस गोलीबारी में त्रिलोकी और गोपाल मारे गए। वहीं, जसवंत को दुश्मन सेना ने घेर लिया और उनका सिर काटकर ले गए।

लेकिन इसके बाद भी जसवंत सिंह की आत्मा ने आहार नहीं मानी वो आज भी देश की सेवा को तत्पर है आपको ये जानकर हैरानी होगी की जसवंत सिंह रावत (Jaswant Singh Rawat) भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ था। पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल के पद पर पहुंच चुके हैं। उनके परिवार वालों को पूरी सैलरी पहुंचाई जाती है।

इसके साथ ही जब भी घर में शादी या धार्मिक कार्यक्रमों के अवसरों पर परिवार वालों को जब जरूरत होती है, तब उनकी तरफ से छुट्टी की एप्लिकेशन दी जाती है और मंजूरी मिलते ही सेना के जवान उनके तस्वीर को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गांव ले जाते हैं। वहीं, छुट्टी समाप्त होते ही उस तस्वीर को ससम्मान वापस उसी स्थान पर ले जाया जाता है।