
चीन एकबार फिर भारत को टेंशन देने जा रहा है क्योंकि वो अरूणाचल प्रदेश के पास बॉर्डर से 30 किमी दूर ब्रह्मपुत्र नदी पर डैम बनाने जा रहा है। हाल ही में चीनी संसद ने 14वीं पंचवर्षीय योजना को मंजूरी दे दी है। इसमें तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर एक हाइड्रोपावर बांध बनाने का प्रॉजेक्ट भी शामिल है। यह बांध अरुणाचल प्रदेश बॉर्डर के नजदीक बनाया जाएगा। इस बांध से भारत और बांग्लादेश, दोनों की चिंताएं बढ़ जाएंगी। अभी यह साफ नहीं है कि बांध बनाने के लिए पानी को किसी तरफ डायवर्ट किया जाएगा या नहीं। हालांकि भारत सरकार ने कहा है कि ब्रह्मपुत्र से जुड़े मसलों पर डिप्लोमेटिक चैनल्स के अलावा 2006 में बने एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज्म के जरिए भी चीन से संपर्क में है।
चीन का मकसद 2060 तक कार्बन न्यूट्रलिटी हासिल करने का है। इसी वजह से उसने तिब्बत में हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट्स को लेकर कोशिशें तेज कर दी हैं। तिब्बती लोग चीन के इन कदमों का विरोध कर रहे हैं। तिब्बती नदियों को पवित्र मानते हैं और उनका विश्वास है नदियों में ईश्वर निवास करते हैं। यारलुंग सांगपो और भी अहम है क्योंकि उसे देवी दोर्जे फागमो के शरीर का प्रतिनिधि माना जाता है।
पश्चिमी तिब्बत के ग्लेशियर से निकलने वाली यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) समु्द्रतल से करीब 5,000 मीटर ऊंचाई तक पहुंचती है, यह दुनिया की सबसे ऊंची नदी है। इसके बाद यह हिमालय पर्वत श्रृंखला के बीच से अपना रास्ता बनाते हुए नीचे आती है। चीन के मुताबिक, अभी उसके सबसे बड़े बांध से जितनी बिजली मिलती है, उससे तीन गुना बिजली प्रस्तावित बांध से मिलेगी।
आपको 25 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले तिब्बती पठार की सीमाएं कई देशों से लगती हैं। यहां के ग्लेशियर्स और पहाड़ी झरनों से निकलने वाला ताजा पानी करीब 1.8 अरब लोगों को पेयजल मुहैया कराता है। इनमें चीन, भारत और भूटान के लोग शामिल हैं। चीन से निकलने के बाद यारलुंग सांगपो बांग्लादेश और असम और अरुणाचल प्रदेश में बहती है। चीन जहां बांध बनाने की बात कर रहा है, वो जगह अरुणाचल से करीब 30 किलोमीटर दूर ही है। चीन इसे एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। अगर चीन ने बांध के जरिए पानी रोका तो भारत और बांग्लादेश के लिए दिक्कत हो जाएगी।
फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर हमसे जुड़ें |